पूरा नाम ::नरेन्द्ननाथ विश्व्नाथ दत्त
जन्म ::12 जनवरी 1863
जन्मस्थान ::कलकत्ता (वेस्ट बंगाल )
पिता :: विश्वनाथ
माता ::भुवनेश्वरी देवी
शिक्षा :: 1884 B.A परीक्षा उत्तीर्ण
स्वामी विवेकानंद के जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त था ये भारतीय हिन्दू सन्यांसी और 19वीं सताब्दी के संत रामकृष्ण के मुख्य शिष्य थे भारत में हिन्दू धर्म को बढाने में इनकी मुख्य भूमिका रही है और भारत को औपनिवेशवक बनाने में इनका मुख्य सहयोग रहा है
इनका जन्म कलकत्ता के बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था स्वामी जी का ध्यान बचपन से ही अधियात्मिक्ता की और था उनके गुरु रामकृष्ण का उनके ऊपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा
उनसे उन्होंने जीवन को सही ढंग से जीने का का उदेश जाना , स्वंय की आत्मा को जाना और और भगवन की सही परिभाषा को जानकार उनकी सेवा कोकि और अग्रसर हुए और अपने दिमाग को भगवान् के ध्यान में लगाया
अपने गुरु कीमृत्यु पश्चात विवेकानंद ने विस्तृत रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश कालीन भारत में लोगों की परिस्थियों को जाना , और उसे समझा भी बाद में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट की यात्रा की जहाँ उन्होंने 1893 के विश्व धर्म सम्मेलन में भारतीओं के हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया
विवेकानंद ने यूरोप , इंग्लॅण्ड और यूनाइटेड स्टेट में हिन्दू शास्त्र की 100 से भी अधिक सामाजिक क्लासेस ली और भाषण भी दिए
भारत में विवेकानंद एक देशभक्त संत के नाम से जाने जाते है उनका जन्म दिन राष्ट्रीय युवा रूप में मनाया जाता है
जीवन जन्म और बचपन --
स्वामी विवेकानंद का जन्म नरेन्द्रनाथ दत्ता के नाम से 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के समय उनके पैतृक घर कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ ,जो ब्रिटिश काल में भारत की राजधानी थी
परिवार --
उनका परिवार एक पारम्परिक कायस्थ परिवार था विवेकानंद के 9 भाई बहन थे उनके पिता विश्वनाथ दत्ता कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे दुर्गाचरण दत्ता जो नरेंद्र के दादा जी थे वे संस्कृत और पारसी के विद्वान थे जिन्होंने 25 साल की उम्र में अपना परिवार और घर छोड़कर एक सन्यासी का जीवन स्वीकार कर लिया उनकी माता भुवनेश्वरी देवी एक देशभगत गृहणी थी
स्वामीजी के माता पिता के अछे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्च कोटि की सोच मिली
नरेंद्र बचपन से ही बहुत शरारती और कुशल बालक थे कई बार उनके माता पिता को भी उन्हें सँभालने में परेशानी होती थी उनकी माता हमेशा कहती थी की मैंने , कि मैंने शिवजी से एक पुत्र की प्रार्थना की थी उन्होंने तो मुझे एक सैतान ही दे दिया
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा--
1871 में , 8 साल की आयु में नरेंद्र को ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटिन इंस्टिट्यूट में डाला गया , 1877 में जब उनका परिवार रायपुर स्थापित हुआ तब तक नरेंद्र ने उस स्कूल से शिक्षा ग्रहण कर ली थी
1879 में, उनके परिवार के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेजिडेंसी कॉलेज की इंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने
वे विभिन विषयों जैसे ,दर्शन शास्त्र ,धर्म ,इतिहास ,सामाजिक विज्ञान ,कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे हिन्दू धर्मग्रंथों में भी उनकी बहुत रूचि थी जैसे, वेद ,
उपनिषद ,भगवत गीता ,रामायण ,महाभारत और पुराण थे नरेंद्र भारतीय पारम्परिक संगीत में निपुण थे और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में भाग लेते थे
रामकृष्ण के साथ स्वामी जी --
1881 में नरेंद्र पहली बार रामकृष्ण से मिले ,जिन्होंने नरेंद्र के पिता की मृत्यु के पश्चात मुख्य रूप से नरेंद्र पर आद्यात्मिक प्रकाश डाला
जब विलियम hastie जनरल असेम्ब्ली संस्था में विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता , पर्यटन ,पर भाषण दे रहे थे तब नरेंद्र ने अपने आप को रामकृष्ण से परिचित करवाया था जब वे कविता के एक शब्द ट्रांस का मतलब समझा रहे थे तब उन्होंने अपने विद्यार्थियों से कहा की वे इसका मतलब जानने के लिए दक्षिणेश्वर में स्तिथ रामकृष्ण से मिले उनकी इस बात ने कई विद्यार्थियों को रामकृष्ण से मिलने के प्रेरित किया ,जिसमें नरेंद्र भी शामिल थे |
ये व्यक्तिगत रूप से 1881 में मिले ,लेकिन नरेद्र उसे अपनी रामकृष्ण के साथ पहली मुलाक़ात नहीं मानते , और ना ही कभी किसी ने उस मुलाक़ात को नरेंद्र और रामकृष्ण की पहली मुलाक़ात के में देखा | उस समय अपनी आने वाली F.A (ललित कला ) परीक्षा की तयारी कर रहे थे |
1881 के अंत और 1882 के प्रारम्भ में ,नरेंद्र अपने मित्रों के के साथ दक्षणीश्वर गए और वहां वे रामकृष्ण से मिले | उनकी यह मुलाक़ात उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था |
ब्रह्म समाज के सदस्य के रूप में , वे मूर्ती पूजा , बहुदेवाद और रामकृष्ण की काली देवी के पूजा के विरुद्ध थे | उन्होंने अद्वैत वेदांत के "पूर्णतया समान समझना " को ईश्वर निंदा और पागलपंती समझते हुए अस्वीकार किया और उपवास उड़ाया | नरेंद्र ने रामकृष्ण की परीक्षा भी ली | जिन्होंने उस विवाद को धैर्यपूर्वक सहते हुए कहा " सभी दृष्टिकोणों से सत्य जाने का प्रयास करे |
नरेंद्र के पिता की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी और परिवार दिवालिया बन गया था | साहूकार दिए हुए कर्जे को वापिस मांग रहे थे और रिश्तेदारों ने भी उनके पूर्वजों के घर से उनके अधिकारों को हटा दियाथा नरेंद्र अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे वे अपने महाविद्यालय के सबसे गरीब विद्यार्थी बन चुके थे
असफलता पूर्वक वे कोई काम ढूंढ़ने में लग गए और भगवान् के अस्तित्व का प्रश्न उनके सामने निर्मित हुआ
जहाँ रामकृष्ण के पास उन्हें तसल्ली मिली |
एक दिन नरेंद्र ने रामकृष्ण से उनके परिवार के आर्थिक भलाई के लिए काली माता से प्रार्थना करने को कहा | और रामकृष्ण की सलाह से वे तीन बार मंदिर गए ,लेकिन वे हर बार उन्हें जिसकी जरूरत है वो मांगने में असफल हुए और उन्होंने खुद को सचाई के मार्ग ले जाने और लोगों की भलाई करने की प्रार्थना की | उस समय नरेंद्र पहली बार भगवान की अनुभूति की थी और उसी समय से नरेंद्र ने रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया था
1885में, रामकृष्ण को गले का कैंसर हुआ और इस वजह से उन्हें कलकत्ता जाना पड़ा ,और बाद में कोस्सिपोरे गार्डन जाना पड़ा | नरेंद्र और उनके साथियों ने रामकृष्ण के अंतिम दिनों में उनकी सेवा की , और साथ ही नरेंद्र ने आध्यात्मिक शिक्षा शुरू की थी कोस्सिपोरे में नरेंद्र ने निर्विकल्प समाधि का अनुभव किया |
मृत्यु --4 जुलाई 1902 ( मृत्यु का दिन ) को विवेकानंद सुबह जल्दी उठे , और बैलूर मठ के पूजा घर में पूजा करने के लिए गए और बाद में 3 घंटो तक योग भी किया | उन्होंने छात्रों को शुक्ल-यजुर -वेद संस्कृत और योग साधनो के विषय में पढ़ाया ,बाद सहशिष्यों के साथ चर्चा की और रामकृष्ण मठ में महाविद्यालय बनाने पर विचार विमर्श किये
शाम के जब 7 बजे तो विवेकानंद जी अपने रुम में गए और अपने शिष्य की शांति भंग करने के लिए मना किया और रात के जब 9 बजे तो उन्होंने ने अपने जीवन की आखिरी सांस ली
उनके शिष्यों के अनुसार उनकी मृत्यु का कारण उनके दिमाग में रक्तवाहिनी में दरार आने के कारण महासमाधि प्राप्त होना है
उनके शिष्यों के अनुसार उनकी महासमाधि का कारण ब्रह्मरंध्रा ( योग का एक प्रकार था ) था |
उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे |
बैलूर की गंगा में उनके शव को चंदन की लकड़ियों से अग्नि दी गयी थी ||
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार --1 . उठो, जागो और तब तक मत रुको
जब तक अपने लक्ष्य को पा ना लो |
2 . सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है
तुम सबकुछ कर सकते हो |
3 . विश्वास करो विश्वास करो
अपने में और भगवान में |
4 . दिल और दिमाग के बीच में
अपने दिल की सुनो |
5 . लोग मुझ पर हँसते क्योंकि में अलग हूँ
मैं लोगों पर हँसता हूँ क्योंकि वो सब एक जैसे है |
6 . तुम भगवान् में तब तक विश्वास सकते
जब तक तुम खुद पर विश्वास नहीं करोगे |
7. एक विचार लो ,और उस विचार को अपनी जिंदगी बना लो
उसी विचार के बारे में सोचो ,उसी के सपने देखो , उसी को जियो |
8. खड़े हो जाओ,
और सारी जिमेवारी अपने कंधो पर ले लो,
अपने को कमज़ोर समझना बंद कर दो |
9. अगर एक दिन भी ऐसा बिता की,
तुम्हे एक भी परेशानी नहीं आयी तो
समझ लो की तुम गलत रस्ते पर जा रहे हो |
10. दर्द और ख़ुशी दोनों ही अच्छे टीचर है |
11. किसी की भी निंदा मत करो |
अगर तुम सहायता कर सकते हो तो करो वरना
अपने हांथो को अंदर कर लो और उन्हें अपने रस्ते जाने दो |
12. मनुष्य की सेवा करो, भगवान् की सेवा करो |
13. वो लोग महान है
जिनका जीवन दूसरों की सेवा में लग गया |
14. खुद को कमज़ोर समझना ही सबसे बड़ा पाप है |
15. दिन में एक बार अपने आप से बात करो,
वरना तुम दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आदमी से बात नहीं कर पाओगे |
निवेदन---
दोस्तों अगर आपको स्वामी विवेकानंद की जीवनी
अच्छी लगी तो हमें कमेंट में जरूर बताएं
और हमसे कोई गलती हो गयी हो प्लीज़ हमें क्षमा करें
धन्यवाद -
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att
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